Monday, March 25, 2024
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हिंदुस्तानियों का वतन से क्यों हो रहा मोह भंग? भारतीय नागरिकता छोड़ कर विदेशी नागरिकता ले रहे हैं हिंदोस्तानी ji

– के. पी. मलिक
इतिहास गवाह है कि हम हिंदुस्तानियों ने हमेशा दुनिया भर के लोगों को पनाह दी है। यहां तक कि हमने दुश्मनों को भी शरणागत समझकर ही उनका स्वागत किया है। हालांकि इसका खामियाजा भी हमने सदियों गुलामी की जंजीरों में जकड़े रहकर भुगता है, लेकिन अपने ही वतन हिंदुस्तान से कभी नफरत नहीं की। आज चाहे विदेशों में बसने वाले करोड़ों हिंदुस्तानी कई पीढ़ियों से दूसरे देशों के नागरिक बने हुए हैं, लेकिन उनके मन में भी हिंदुस्तान और तिरंगे के प्रति जो सम्मान है, वो देखते ही बनता है। हाल ही में ब्रिटेन के पीएम पद की दौड़ में आगे चल रहे हिंदुस्तानी ऋषि सुनक ने भी अपने इस देश पर गर्व जताया है।
यह बात भी हम सभी जानते हैं कि सदियों से करोड़ों भारतीय अधिक पैसा कमाने के चक्कर में हिंदुस्तान और घर-परिवार छोड़कर सात समुद्र पार जाते हैं। उनमें से कई तो पूरी तरह वहीं बस चुके हैं, तो कई आते-जाते रहते हैं। इसके अलावा पढ़ाई के लिए भी लाखों बच्चे हर साल विदेशों का रुख करते हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों से जिस तरह से कई हिंदुस्तानी उद्योगपति बैंकों का करोड़ों रुपया लेकर भागे हैं और विदेशों में छुपकर बैठे हैं, वो हैरानी वाली बात है। लेकिन इससे भी हैरानी वाली बात है कि पिछले कुछ सालों से अनेक भारतीयों ने विदेशी नागरिकता ली है यानि हिंदुस्तान की नागरिता को वो एक तरह से छोड़ रहे हैं।
इन दिनों संसद का मानसून सत्र चल रहा है और मेरे ख्याल ये संसद में यह सवाल पक्ष या विपक्ष द्वारा जरूर उठाया जाना चाहिए। यह एक चिंता का विषय है कि पिछले कुछ सालों में हिंदुस्तान की नागरिकता छोड़कर विदेशी नागरिकता हासिल करने वालों में अधिकतर उद्योगपति हैं और उनका साफ-सुथरा जवाब यही है कि हिंदुस्तान रहने लायक नहीं रह गया है। पिछले साल लंदन में मुकेश अंबानी ने जिस तरह घर खरीदा और दीवाली भी वहीं मनाई ये कम चिंता की बात नहीं है। हालांकि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बड़ी ईमानदारी के साथ हिंदुस्तान की नागरिकता छोड़ने वालों के आंकड़े को इस मानसून सत्र में जारी किया, लेकिन इसका समाधान भी केंद्र की मोदी सरकार को ही ढूंढना होगा। संसद में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा कि औसतन हर साल तकरीबन डेढ़ लाख लोग हिंदुस्तान की नागरिकता छोड़ रहे हैं। उन्होंने आंकड़े पेश करते हुए कहा कि साल 2019 में 1 लाख 44 हज़ार से अधिक लोगों ने, साल 2020 में 85 हज़ार 256 लोगों ने और साल 2021 में 1 लाख 63 हज़ार 370 लोगों ने हिंदुस्तान की नागरिकता छोड़कर विदेशी नागरिकता ली है। हैरानी की बात है कि साल 2020 में जब कोरोना महामारी ने हाहाकार मचाकर रखा हुआ था और उसका यह कहर साल 2021 में भी जारी रहा, बल्कि और ज्यादा बरपा, तब भी इतनी बड़ी संख्या में हिंदुस्तानियों ने इतनी बड़ी संख्या में अपने उस देश की नागरिकता छोड़ दी, जिसे वे जान से ज्यादा प्यार करते हैं?
हिंदुस्तान छोड़कर विदेश जाने वालों की पहली पसंद अमेरिका बना हुआ है। गृह मंत्रालय की ओर से जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि देश छोड़ने वाले हिंदुस्तानियों की पहली पसंद अमेरिका, दूसरी पसंद आस्ट्रेलिया और तीसरी पसंद कनाड़ा बना हुआ है। गृह मंत्रालय के मुताबकि, साल 2019 में 61 हज़ार 683 हिंदुस्तानी. साल 2020 में 30 हज़ार 828 हिंदुस्तानी और साल 2021 में 78 हज़ार 284 हिंदुस्तानी भारत की नागरिकता छोड़कर अमेरिका के नागरिक बने। हैरानी की बात तो यह है कि कई हिंदुस्तानियों ने तो हमारे दुश्मन देश पाकिस्तान तक की नागरिकता ली है।
गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2020 में 7 हिंदुस्तानियों ने, जबकि साल 2021 में 41 हिंदुस्तानियों ने पाकिस्तान की नागरिकता ली है। हालांकि साल 2019 में एक भी हिंदुस्तानी ने पाकिस्तान की नागरिकता नहीं ली है। इसी तरह के कुछ आंकड़े बताते हैं कि हजारों की संख्या में हिंदुस्तानी दुश्मन देश चीन में भी जा बसे हैं। कुल मिलाकर गृह मंत्रालय ने लोकसभा में कहा है कि पिछले तीन सालों में 3 लाख 92 हज़ार 643 हिंदुस्तानियों ने यहां की नागरिकता छोड़कर विदेशी नागरिकता ले ली है। लोकसभा में सांसद हाजी फजलुर्रहमान के सवाल के लिखित जवाब में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने ये आंकड़े पेश किए थे। कुल मिलाकर यह हमेशा के लिए विदेश में जाकर बसने वालों के आंकड़े हैं। मॉर्गन स्टैनली नामक बैंक की साल 2018 की एक रिपोर्ट बताती है कि साल 2014 से साल 2018 तक तकरीबन 23 हज़ार हिंदुस्तानी करोड़पति हिंदुस्तान छोड़ चुके थे। वहीं ग्लोबल वेल्थ माइग्रेशन रिव्यू की रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2020 में हिंदुस्तान के करीब 5 हज़ार करोड़पति देश छोड़कर विदेशी नागरिक बन गए। दूसरे देशों में नागरिकता और वीजा दिलाने वाली कंपनी हेनरी एंड पार्टनर्स की रिपोर्ट बताती है कि विदेशी नागरिकता के बारे में पूछताछ करने वाले हिंदुस्तानी लगातार तेजी से बढ़ रहे हैं। यह रिपोर्ट बताती है कि साल 2020 के मुकाबले साल 2021 में 54 फीसदी ज्यादा हिंदुस्तानियों ने विदेशी नागरिकता कैसे लें, इस बारे में पूछताछ की। वहीं साल 2019 के मुकाबले साल 2020 में विदेशी नागरिकाता के नियमों के बारे में पूछने वाले हिंदुस्तानियों की संख्या में 63 फ़ीसदी इजाफा हुआ। सवाल यह है कि आखिर इतनी बड़ी संख्या में हिंदुस्तानी विदेशी नागरिकता क्यों ले रहे हैं? विशेषज्ञों की मानें तो हिंदुस्तानियों द्वारा यहां की नागरिकता छोड़ने की वजहों में सबसे प्रमुख वजहें कारोबार में दिक्कतें, सुरक्षा का खतरा, सामाजिक समरसता, माहौल का खराब होना, बोलने की आजादी पर रोक लगना और मंदी की मार है।
जानकारों का मानना हैं कि साल 2031 तक यानि आने वाले 8-9 सालों में हिंदुस्तान में तकरीबन 80 फीसदी करोड़पति बढ़ जाएंगे। लेकिन यहां यह बात कहने में मुझे कोई गुरेज नहीं है कि कोरोना महामारी के हाहाकार वाले दिनों में भी हिंदुस्तान में तीन दर्जन से अधिक करोड़पतियों की संख्या बढ़ी। लेकिन वहीं दूसरी ओर गरीबों के बढ़ने के आंकड़े भी सामने आए, तो क्या यह भी देश के लिए सही है कि एक तरफ चंद लोग अमीर हो गए, लेकिन दूसरी तरफ लाखों लोग गरीब हो गए? कहने का मतलब यह है कि अगर 100-200 करोड़पति हिंदुस्तान में बढ़ भी जाएं, और उसके बदले करोड़ों गरीब बढ़ जाएं, तो क्या इसे तरक्की कहेंगे?
सवाल यह भी हैं कि क्या नागरिकता छोड़ने वाले लोगों को यहां के हालात ठीक नहीं लग रहे हैं? या क्या वे मोदी सरकार की नीतियों से खुश नहीं हैं? या क्या वे विश्वगुरु बनने की ओर अग्रसर हिंदुस्तान का भविष्य का असली नक्शा क्या होगा, यह भांप चुके हैं? इन सब सवालों के हल तो सरकार और सत्तारूढ़ दल को ही ढूंढने होंगे, अन्यथा हिंदुस्तान के पैसे वाले लोग ऐसे ही नागरिकता छोड़ते गए, तो आने वाले वक्त में कई मुश्किलें खडी होंगी, जिनका समाधान निकालना कठिन होगा। क्योंकि जाहिर है कि विदेश की नागरिकता लेने या विदेश जाने के लिए मोटी रकम की जरूरत होती है, जो हर किसी के बस की बात नहीं है। कहने का मतलब यह है कि अब तक जिन लोगों ने हिंदुस्तान की नागरिकता छोड़कर विदेशी नागरिकता ली है या आगे लेंगे, वो सब पैसे वाले ही हैं, क्योंकि कम पैसे वाले तो बिना केंद्र सरकार या विदेशी सराकरों की सहमति और आज्ञा के कभी विदेश जा ही नहीं सकते।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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