नई दिल्ली (अनवार अहमद नूर)
दिल्ली जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में छात्रों ने बड़ी संख्या में इकट्ठा होकर जामिया मिल्लिया के भगवाकरण और आरएसएस नेता इंद्रेश कुमार के प्रवेश का जमकर विरोध किया। और जामिया गेट के बाहर जमकर नारेबाजी की। और जामिया मिल्लिया इस्लामिया में “मोदी @ 20: ड्रीम मीट डिलीवरी” पर एक सेमिनार आयोजित करके “विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा परिसर के भगवाकरण के प्रयासों” के ख़िलाफ अपना विरोध प्रकट किया।
बड़ी संख्या में इकट्ठा हुए सैकड़ों छात्रों ने फ्रेटरनिटी मूवमेंट, ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन, कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया, स्टूडेंट्स इस्लामिक ऑर्गनाइजेशन ऑफ इंडिया, स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया, नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन, डीआईएसएससी और AIRSO के बैनर तले विश्वविद्यालय अधिकारियों के ख़िलाफ़ नारे लगाए गए। आज़ादी के 75वें वर्ष में देशभर के केंद्रीय विश्वविद्यालय इसी विषय पर सेमिनार आयोजित कर रहे हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ नेता इंद्रेश कुमार को इस सेमिनार में आमंत्रित करने पर विश्वविद्यालय के छात्र अपना कड़ा विरोध प्रकट कर रहे थे। कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया और अन्य संगठनों के छात्र नेताओं ने अपने संबोधन और मीडिया कर्मियों से कहा कि शिक्षा और संस्कृति तथा जामिया के मूल आदर्शो को नुकसान पहुंचाने वालों को जामिया मिल्लिया इस्लामिया में आमंत्रित करने के ख़िलाफ़ हम आवाज़ उठा रहे हैं।
आइसा के छात्र नेता शोएब ने कहा कि हम ऐसे व्यक्ति जो आरएसएस से जुड़ कर, मुसलमानों के ख़िलाफ़ अनेक मामलों में संदिग्ध रहा है और मुसलमानों के ख़िलाफ़ अभियान भी मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के नाम से ही चला रहा है उस व्यक्ति को हम अपने जामिया मिल्लिया इस्लामिया के परिसर में नहीं देखना चाहते हैं। एसआईओ के सालेह अंसारी ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि जामिया प्रशासन कई वर्षों से केवल भगवा पार्टी की मांगों को पूरा कर रहा है। और भाजपा सरकार के अपराधों को सफेद करने के लिए 2002 के गुजरात मुस्लिम नरसंहार के बाद गठित राष्ट्रीय मुस्लिम मंच अब जामिया मिल्लिया इस्लामिया जैसी अल्पसंख्यक संस्था में प्रवेश का प्रयास कर रहा है। ऐतिहासिक एंटी-सीएए विरोध के बाद, जामिया मिलिया इस्लामिया में आंशिक रूप से ऑफ़लाइन कक्षाओं के लिए फिर से खोल दिया गया। लेकिन परिसर के बाहर पुलिस और अर्धसैनिक बलों की मज़बूत तैनाती एक अलग वातावरण और भय पैदा करने वाली है।
यहां बताया गया है कि जब से विश्वविद्यालय ने आंशिक रूप से कोविड के बाद छात्रों के लिए फिर से खोल दिया है, पुलिस और अर्धसैनिक बल विश्वविद्यालय में तैनात रहे हैं। किसी भी मुद्दे पर, परिसर में किसी भी बात को लेकर असंतोष के मामले में जामिया एक अर्धसैनिक शिविर बना होता है, यहां तक कि अपने छात्रों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है। बयान में कहा गया है, “छात्रों के ख़िलाफ़ शत्रुतापूर्ण माहौल और परिसर के भीतर सभी प्रकार की छात्रों की व्यस्तता ने शैक्षणिक और लोकतांत्रिक वातावरण की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है।