नई दिल्ली (एजेन्सी )
पूर्व प्रधानमंत्री और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल के नेता केपी शर्मा के इस हफ्ते पशुपतिनाथ मंदिर में जाकर आरती करने की घटना यहां सियासी हलकों में काफी चर्चित है। ओली सावन सोमवारी के दिन पशुपतिनाथ मंदिर गए थे। वे वहां भीड़ के बीच बैठे और आरती में शामिल हुए। ओली कम्युनिस्ट नेता हैं, अब तक अपने को धर्मनिरपेक्ष बताते रहे हैं। कम्युनिस्ट विचारधारा को वैसे भी निरीश्वरवादी माना जाता है।
पर्यवेक्षकों के मुताबिक ओली आम चुनाव के लिए प्रचार अभियान में उतर चुके हैं। खबर है कि प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा के नेतृत्व वाले सत्ताधारी गठबंधन में अगले 20 नवंबर को संघीय और प्रांतीय विधायिकाओं के लिए मतदान कराने पर सहमति बन गई है। ऐसे में उस रोज चुनाव होना तय माना जा रहा है। इसलिए ओली की पशुपतिनाथ यात्रा को उनके चुनाव अभियान से जोड़ कर देखा गया है।
ओली जनवरी 2021 में भी पशुपतिनाथ गए थे। तब कम्युनिस्ट हलकों में उस पर कड़ी प्रतिक्रिया हुई थी। इस बार मंदिर जाने के पहले एक पुस्तक लोकार्पण समारोह में उन्होंने आरोप लगाया कि 2016 में उनकी सरकार ने चीन के साथ पारगमन समझौते पर दस्तखत किया और 2021 में देश का नया राजनीतिक नक्शा जारी किया। इसी के बाद उनके सरकार को गिराने के प्रयास तेज हुए। ओली सरकार ने जो नया नक्शा जारी किया था, उसमें भारत के इलाकों- कालापानी, लिपुलेख और लिमपियाधुरा को नेपाल का हिस्सा बताया गया था। पर्यवेक्षकों के मुताबिक चीन और नए नक्शे का जिक्र करने से यह संकेत मिलता है कि ओली अगले चुनाव में भारत विरोधी कार्ड भी खेलने की तैयारी में हैं। ओली ने कहा है- ‘जब मैं नया नक्शा जारी कर रहा था, तब मुझे मालूम था कि इस पर हंगामा होगा और मुझे पद छोड़ना पड़ेगा। लेकिन यह निर्विवाद है कि कालापानी, लिपुलेख और लिमपियाधुरा हमारा हिस्सा हैं।’ ओली सरकार के समय नए नक्शे को अपनाने के लिए लाए गए संविधान संशोधन बिल को नेपाल की संसद ने सर्वसम्मति से मंजूरी दी थी। तब से वो मामला लटका हुआ है। देउबा सरकार ने इस पर ज्यादा जोर नहीं दिया है। जानकारों की राय है कि अब ओली अगले चुनाव में इस मुद्दे को उठा कर उग्र राष्ट्रवादी एजेंडा अपनाने की तैयारी में हैं।
पूर्व विदेश मंत्री रमेश नाथ पांडेय ने अखबार काठमांडू पोस्ट से कहा है कि ‘इसमें तो अब कोई शक नहीं है कि ओली हिंदू भावनाओं का इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहे हैं। वे धर्म और राष्ट्रवाद के मुद्दे पर चुनावी बैतरणी पार करना चाहते हैं।’ विश्लेषकों ने ध्यान दिलाया है कि 2017 के आम चुनाव में भी ओली ने उग्र राष्ट्रवादी तेवर अपनाए थे। तब उन्होंने भारत के खिलाफ उग्र बातें कही थीं। समझा जाता है कि तब उन्हें इसका फायदा मिला। इसलिए अब वे उसी रुख को दोहराना चाहते हैं। ओली ने 2017 में प्रधानमंत्री बननेके बाद यह दावा भी किया था कि भगवान राम का जन्म अयोध्या में नहीं, बल्कि नेपाल के चितवन स्थित ठोरी में हुआ था। उन्होंने वहां राम मंदिर बनाने के लिए एक कमेटी भी बनाई थी। अब वे चुनाव में हिंदू कार्ड खेलने की तैयारी में हैं।
