ताइवान के दोस्त सोमालीलैंड ने दुनिया को बताई चीन की सच्चाई कि दुश्मन देशों में कैसे घुसपैठ करता है वह-?

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नई दिल्ली (एजेंसी)
ताइवान और चीन को लेकर चला विवाद विश्व में चर्चित है और चीन इतना आगे बढ़ा हुआ है कि वह अमेरिका तक को धमकाने से बाज नहीं आ रहा। ऐसे में दुनियाभर के छोटे-छोटे देशों का इस मुद्दे पर चीन के सामने खड़ा होना भी मुश्किल है। लेकिन, अफ्रीका का एक स्वघोषित देश ऐसा भी है, जिसने ताइवान से दोस्ती को लेकर चीन की चाल को बेनकाब कर दिया है। इस देश का नाम सोमालीलैंड है, जो 1991 तक सोमालिया का हिस्सा था। सोमालीलैंड के विदेश मंत्री एसा कायड ने बताया है कि कैसे चीन ने उनके देश में आई एक आपदा का इस्तेमाल अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए करना चाहा। लेकिन, सोमालीलैंड ने चीन की मंशा को भांप लिया और चीनी राजनयिक के दौरे को रद्द करवा दिया। सोमालीलैंड ने जुलाई 2020 में चीन की धमकियों की परवाह न करते हुए ताइवान के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किए थे। यह 15वां ऐसा देश है, जिसका ताइवान के साथ राजनयिक संबंध हैं। ताइवान की तरह खुद सोमालीलैंड भी दुनियाभर के देशों और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से एक देश के रूप में मान्यता पाने के लिए संघर्ष कर रहा है। सोमालीलैंड के सबसे बड़े मार्केट में आग लगने के बाद एक वरिष्ठ चीनी राजनयिक ने मृतकों को श्रद्धांजलि देने के लिए आने की अनुमति मांगी। सोमालिया में बीजिंग के राजदूत फी शेंगचाओ ने सोमालिलैंड के अधिकारियों से कहा कि वह इस बात पर चर्चा करना चाहते हैं कि चीन आपदा के प्रभाव को कम करने में कैसे मदद कर सकता है। यह दुर्घटना इतनी बड़ी थी कि पहले से ही कोरोना महामारी और सूखे से जूझ रहे सोमालीलैंड की अर्थव्यवस्था को ही तहस-नहस कर दिया था। चीन ने इसी मौके का फायदा उठाने के लिए बड़ी ही बारीकी से प्लानिंग को अंजाम दिया।
जैसे ही यात्रा नजदीक आई, चीनी राजदूत फी शेंगचाओ ने मालिलैंड की राजधानी हर्गेइसा में अपने यात्रा कार्यक्रम में कुछ अन्य पड़ाव जोड़े। उन्होंने सोमालीलैंड को सूचित किया कि वे अपनी यात्रा के दौरान सांसदों, विपक्ष के नेताओं और विश्वविद्यालय के छात्रों से मिलना चाहते थे। राजदूत के अनुरोधों ने सोमालीलैंड के अधिकारियों के बीच तत्काल संदेह पैदा कर दिया। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि बीजिंग का असली एजेंडा आपातकालीन सहायता पर बात करना नहीं था। यह ताइवान के साथ सोमालीलैंड के तनावपूर्ण राजनयिक संबंधों को तोड़ने के लिए स्थानीय सहयोगियों की भर्ती करना था। सोमालीलैंड के के विदेश मंत्री एसा कायड ने कहा कि यह यह विशुद्ध रूप से राजनीतिक यात्रा थी। जिसके बाद सरकार ने चीनी राजदूत से सीधे तौर पर कहा कि इस देश में उनका स्वागत नहीं है। जिसके बाद यह यात्रा कभी भी नहीं हुई। कायड ने एक इंटरव्यू में बताया कि हमने सोचा कि यह उचित नहीं था। इसलिए नहीं कि हमें किसी चीज़ का डर था, बल्कि इसलिए कि यह उस एजेंडे से अलग था जिस पर हम सहमत थे। चीन ने अफ्रीका के अधिकतर देशों को इतना कर्ज दे दिया है कि उनके अंदर बीजिंग को ना कहने की हिम्मत ही नहीं है। इन देशों में चीन की सरकारी कंपनियों ने विशाल बंदरगाहों, हवाई अड्डे के टर्मिनलों और राजमार्गों का निर्माण किया है। बड़ी बात यह है कि निर्माण में इस्तेमाल किया गया पैसा चीन से कर्ज के तौर पर मिला, जिसका बड़ा हिस्सा चीनी कंपनियां निर्माण की लागत के तौर पर वापस अपने देश लेकर चली गईं। इनमें निर्माण में इस्तेमाल होने वाली सामग्री, मजदूर और इंजीनियरों की तनख्वाह, तकनीक पर कर्ज का बड़ा हिस्सा खर्च किया गया।
सोमालीलैंड 1991 में सोमालिया से अलग होकर खुद को स्वतंत्र देश घोषित किया था। लेकिन, आज भी इसे दुनियाभर के अधिकतर देशों ने सोमालीलैंड को एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता नहीं दी है। सोमालीलैंड का क्षेत्र ज्यादातर शांतिपूर्ण रहा है जबकि सोमालिया तीन दशकों के गृहयुद्ध से जूझ रहा है। सोमालीलैंड हॉर्न ऑफ अफ्रीका में स्थित है, जिसके उत्तर में अदन की खाड़ी, पूर्व में सोमालिया और उत्तर पश्चिम में जिबूती और इथियोपिया हैं।

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