नई दिल्ली (क़ौमी आग़ाज़ ब्यूरो )
देश के लोकतन्त्र का मंदिर कहलाये जाने वाली संसद में सदनों की कार्रवाई के बार-बार स्थगन के बीच कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा है कि सांसदों को गंभीरता से आत्मनिरीक्षण करना चाहिए कि क्या बाधा या व्यवधान एक ‘वैध रणनीति’ है। उन्होंने कहा कि इसका उपयोग केवल चरम स्थिति में किया जाना चाहिए। हालांकि उन्होंने कहा कि सदन चलाना सरकार की जिम्मेदारी है, और लगातार स्थगन के लिए कांग्रेस पर दोष डालना ‘दुर्भाग्यपूर्ण और अवसरवाद है, क्योंकि भाजपा और उनके सहयोगियों ने 2004-14 के दौरान विपक्ष के रूप में संसद को रोक दिया था।
तिवारी ने एक साक्षात्कार में सलाह दी कि एक नियम के रूप में शाम छह बजे सरकारी कामकाज समाप्त होने के बाद विपक्ष द्वारा सामूहिक रूप से तय किए गए किसी भी विषय पर लोकसभा में नियम 193 के तहत चर्चा की अनुमति दी जानी चाहिए।
उन्होंने कहा, “मैंने स्पीकर (ओम बिड़ला) के साथ एक अनौपचारिक बातचीत में यह सुझाव दिया था कि एक नियम के रूप में शाम छह बजे सरकार कामकाज समाप्त होने के बाद संसद के कार्य दिवस 6 बजे से 9 बजे के बीच किसी भी विषय पर नियम 193 के तहत चर्चा के लिए विपक्ष द्वारा सुझाव दिया जाना चाहिए। इसी तरह समवर्ती नियम के तहत राज्यसभा में चर्चा हो सकती है।”
कांग्रेस सांसद ने कहा कि यह सुनिश्चित करेगा कि सरकारी कामकाज निर्बाध रूप से चलेगा और विपक्ष भी देश के सामने मामलों पर अपनी चिंताओं को स्पष्ट करने में सक्षम है। दुर्भाग्य से ऐसा लगता है कि ट्रेजरी बेंच बहुत उत्साही नहीं हैं।
तिवारी ने कहा, “मानसून सत्र का पहला सप्ताह लगभग समाप्त होने के साथ ही वाद-विवाद के बजाय व्यवधान संसद में आदर्श बन रहा है। उन्होंने कहा कि एक संस्था के रूप में संसद और विधानसभाएं देश के राष्ट्रीय विमर्श के लिए अप्रासंगिक हो गए हैं। यह मुख्य रूप से इसलिए है क्योंकि दशकों से देशभर में सभी दलों के सांसदों और विधायकों ने व्यवस्थित तरीके से संस्था का अवमूल्यन किया है।”
मनीष तिवारी ने पूछा, आप एक ऐसी संस्था के बारे में क्या सोचेंगे जहां व्यवथान आदर्श है और कामकाज अपवाद है? आप सुप्रीम कोर्ट के बारे में क्या सोचेंगे यदि वकील नियमित रूप से इसके कामकाज को बाधित करते हैं? आप उस कार्यपालिका के बारे में क्या सोचते हैं जिसके सचिव, संयुक्त सचिव या अन्य अधिकारी लंबे समय तक मौजमस्ती पर चले जाते हैं?
कांग्रेस सांसद ने कहा, सांसदों और विधायकों को गंभीरता से आत्मनिरीक्षण करना चाहिए कि क्या व्यवधान “वैध संसदीय रणनीति” है। उन्होंने आगे कहा, इसे (व्यवधान की रणनीति) इस्तेमाल किया जाना चाहिए। चरम स्थिति में चतुराई से किया जाना चाहिए लेकिन निश्चित रूप से यह आदर्श नहीं बनना चाहिए। उन्होंने कहा कि सदन चलाने की जिम्मेदारी सरकार की होती है।