नई दिल्ली (अनवार अहमद नूर )
बिहार की राजनीति में एक बार फिर बड़ा उलटफेर हो गया। नीतीश कुमार के बिहार के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देने और राज्यपाल फागू चौहान से मुलाक़ात करने के बाद एक बार फिर वह राजद के साथ आ गए। और बिहार में नई सरकार बनाने का दावा पेश करने के लिए नीतीश कुमार, राजद नेता तेजस्वी यादव और जदूय अध्यक्ष ललन सिंह एक ही कार में बैठकर राजभवन पहुंचे। राजभवन में विधायकों के समर्थन वाली चिट्ठी सौंपने के बाद नीतीश कुमार ने दावा किया कि उनके साथ सात पार्टियों का समर्थन है। जिसमें 164 विधायक हैं। इसके अलावा एक निर्दलीय विधायक का भी सपोर्ट है। अब आज 10 अगस्त 2022 को
नीतीश कुमार 8वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे हैं और इस बार तेजस्वी यादव उनके डिप्टी सीएम बनेंगे। नीतीश कुमार आठवीं बार बिहार की बागडोर संभालने के लिए तैयार हैं। जेडीयू के नेता नीतीश बुधवार दोपहर दो बजे बिहार के नए मुख्यमंत्री पद के रूप में शपथ लेंगे। जबकि, राजद नेता तेजस्वी यादव बिहार के उपमुख्यमंत्री होंगे।
बिहार के इस अचानक राजनीतिक उलट फेर से सियासी गलियारों में खूब हलचल है। भाजपा को तो एकदम ज़ोर का करंट लगा है। लेकिन विपक्षी खेमे में काफी ख़ुशी पाई जाती है। राजद नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि भाजपा का काम सिर्फ छोटे दलों को नष्ट करना है। इस बार बिहार में ऐसा नहीं होगा। बिहार में सभी पार्टियों का हमें समर्थन है। ऐसे में विधानसभा में विपक्ष पर भाजपा अकेले बैठे नज़र आएगी। जबकि दूसरी ओर पटना में भाजपा कोर ग्रुप की बैठक में रविशंकर प्रसाद, शाहनवाज हुसैन और गिरिराज सिंह समेत कई नेता मौजूद रहे। गिरिराज सिंह ने कहा कि नीतीश कुमार ने जनता के साथ धोखा किया है। जनता उन्हें जरूर सबक सिखाएगी। वहीं, रविशंकर प्रसाद ने भाजपा द्वारा उनकी पार्टी तोड़ने की बात नीतीश से पूछा सवाल। कहा कि हमारे साथ कैसे और क्यों आए थे, यह याद दिलाना जरूरी। उन्होंने कहा कि आपने लालू को छोड़ा था। हम चारा घोटाले की लड़ाई लड़ रहे थे। मैं वकील था, सुशील मोदी पेटिशनर थे। रविशंकर प्रसाद ने कहा कि आपने समता पार्टी बनाई थी। आप भाजपा के साथ रहे क्योंकि जंगलराज परिवारवाद लूट के खिलाफ थे। उनके इस कदम को जदयू के पूर्व अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री रहे रामचंद्र प्रसाद सिंह (आरसीपी सिंह) ने 2020 के जनादेश के साथ विश्वासघात बताया है। बिहार बीजेपी के अध्यक्ष संजय जायसवाल ने पटना में कहा कि बिहार की जनता इसे कतई बर्दाश्त नहीं करेगी। जेडीयू को 2020 के विधानसभा चुनाव में कुल 43 सीटें मिली थी और उनकी सहयोगी बीजेपी को 74 सीटें मिली। साल 2015 के चुनावी नतीज़ों में भी नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू सबसे बड़ी पार्टी बनकर नहीं उभरी थी. इसके बावजूद उन्हें महागठबंधन ने मुख्यमंत्री बनाया था। वहीं, जदयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने एनडीए का साथ छोड़ देने के बाद कहा है कि यह निर्णय सिर्फ़ बिहार ही नहीं देश के लिए भी मील का पत्थर साबित होगा।
आपको बता दें कि नीतीश कुमार 17 साल तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे हैं। साल 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी से गठबंधन तोड़कर नीतीश कुमार लोकसभा चुनाव अकेले लड़े लेकिन उन्हें क़रारी हार का सामना करना पड़ा। मई 2014 में सीएम पद छोड़ने वाले नीतीश कुमार ने फ़रवरी 2015 में जीतनराम मांझी को पार्टी से निकालकर खुद 130 विधायकों के साथ राजभवन पहुंचे और सरकार बनाने का दावा पेश किया। इसके ठीक बाद विधानसभा चुनाव में लालू के 15 साल के शासन के ख़िलाफ़ लड़कर सत्ता में आने वाले नीतीश कुमार ने ये समझ लिया कि बिना गठबंधन बिहार में सरकार बनना संभव नहीं है
और यहीं से जेपी और कर्पूरी ठाकुर के सानिध्य में राजनीति सीखने वाले लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार एक साथ आए। बिहार में दोनों नेताओं के ‘सामाजिक न्याय के साथ विकास’ के नारे ने राज्य में बीजेपी के ‘विकास’ के नारे को पटखनी दे दी,लेकिन 27 जुलाई 2017 को पटना में राजनीतिक सरगर्मी तब बढ़ गई जब नीतीश कुमार राज्यपाल केसरी नाथ त्रिपाठी से मिलने राजभवन पहुंचे और अपना इस्तीफ़ा सौंप दिया। नीतीश ने ये इस्तीफ़ा राज्य के तत्कालीन उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद दिया था, और उन आरोपों को ही इस्तीफ़े की वजह बताया था। इसके ठीक बाद नीतीश कुमार उस बीजेपी के साथ सत्ता में आए जिसके लिए भरे सदन उन्होंने कहा था- ‘मिट्टी में मिल जाऊंगा लेकिन भाजपा के साथ नहीं जाऊंगा.’ अब नीतीश कुमार एक बार फिर राजद के साथ आ गए हैं।
राजनीति में अपने समीकरणों और संभावनाओं को देख कर दावं खेलते हुए नीतीश कुमार, जो नरेंद्र मोदी की “सांप्रदायिक छवि” से कतराते रहे थे, उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के लिए मंच से वोट मांगे और साल 2020 के विधानसभा में पीएम नरेंद्र मोदी ने नीतीश कुमार के लिए वोट मांगे थे। और अब फिर नीतीश कुमार भाजपा के साथ का दामन छोड़कर राजद के पहलू में आ गये हैं। भले ही बहुत से उन्हें पलटू राम का खिताब दे रहे हैं।